चंडीगढ़. पंजाब के गवर्नर और यूटी के प्रशासक शिवराज पाटिल का कहना है कि चंडीगढ़ में हम खुद को बेस्ट कहते हैं, लेकिन हम बेस्ट नहीं हंै। बेस्ट हम तब बनेंगे जब कार्बूजिए के आर्किटेक्चर की तरह ही हमारे एजुकेशन सिस्टम की तारीफ भी देश-दुनिया में हो। हमारे गवर्नमेंट स्मार्ट स्कूलों से राजस्थान के स्मार्ट स्कूल बेहतर हैं।इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट ऐसे क्लासरूम बनाएं, जिसमें 40 नहीं 500 स्टूडेंट्स बैठ सकें। आप सोचेंगे कि 500 एक साथ पढेंग़े कैसे? मैं आपको बता दूं कि क्लासरूम की पूरी दीवार जितनी बड़ी स्क्रीन बनाएं और प्रोजेक्टर से पढ़ाएं तो यह बिल्कुल संभव है। मैं इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट के अफसरों से कहता हूं कि सोच बदलें और क्लासरूम बड़े बनाएं। इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के पास जो पैसा आता है उसे खर्च करना चाहिए।क्लासरूम इंटरेक्टिव बनाए जाएं, ताकि स्टूडेंट्स की पार्टिसिपेशन बढ़े। देश में जो भी सब्जेक्ट विशेष का बेस्ट टीचर हो, उसके बनाए लेसन की सीडी मार्केट में उपलब्ध है, उससे प्रोजेक्टर के जरिए पढ़ाएं।
सोमवार को सेक्टर-5३ में गवर्नमेंट स्मार्ट स्कूल का उद्घाटन करने पहुंचे पाटिल ने अफसरों को निशाने पर लेते हुए कहा- डंडा चलाना और धमकाना प्रशासन नहीं है। हम यहां प्रॉब्लम बताने नहीं, उसका सॉल्यूशन निकालने के लिए हैं। मुझे बताया गया है कि टीचर्स की कमी है, स्कूल-कॉलेज या यूनिवर्सिटी हर जगह टीचर्स की कमी है। हमें इसका वैकल्पिक हल निकालना चाहिए। क्लासरूम बड़े होंगे तो टीचर्स की कमी दूर की जा सकती है।
जब पाटिल को नहीं दी एडमिशन
पाटिल ने बताया, 'मैं लातूर गांव (महाराष्ट्र) में पांचवीं तक पढ़ा। छठी में एडमिशन के लिए शहर गया जहां दो स्कूल थे। प्राइवेट स्कूल टॉप पर था, दूसरा सरकारी स्कूल था। मैं प्राइवेट में दाखिले के लिए गया तो यह कह कर मना कर दिया गया कि मैं देहाती हूं। इस कारण गवर्नमेंट स्कूल में दाखिला लेना पड़ा। लेकिन आज वही देहाती कहां तक पहुंच गया। इसलिए किसी गरीब को दाखिले के लिए कभी मना नहीं करना चाहिए
पाटिल ने बताया, 'मैं लातूर गांव (महाराष्ट्र) में पांचवीं तक पढ़ा। छठी में एडमिशन के लिए शहर गया जहां दो स्कूल थे। प्राइवेट स्कूल टॉप पर था, दूसरा सरकारी स्कूल था। मैं प्राइवेट में दाखिले के लिए गया तो यह कह कर मना कर दिया गया कि मैं देहाती हूं। इस कारण गवर्नमेंट स्कूल में दाखिला लेना पड़ा। लेकिन आज वही देहाती कहां तक पहुंच गया। इसलिए किसी गरीब को दाखिले के लिए कभी मना नहीं करना चाहिए