जयपुर. प्रदेश के सरकारी स्कूलों में टॉयलेट नहीं होने से बेटियों को शर्मसार होना पड़ता है। तीन हजार स्कूलों में टॉयलेट नहीं हैं तो 70 हजार स्कूल कॉमन टॉयलेट के भरोसे हैं।हालत ये है अब तक करीब 45 हजार (ड्रापआउट का 15%) बेटियां इस समस्या के कारण पढ़ाई छोड़ चुकी हैं। दो साल पहले हुए चाइल्ड ट्रैकिंग सर्वे के अनुसार प्रदेश में लड़कियों के स्कूल ड्रापआउट का आंकड़ा तीन लाख से पार पहुंच चुका है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृहजिले जोधपुर में 144 स्कूलों के बच्चे खुले में टॉयलेट को मजबूर हैं। शिक्षामंत्री बृजकिशोर शर्मा के गृहक्षेत्र जयपुर में ऐसे स्कूलों में संख्या 236 है। बजट अध्ययन राजस्थान केंद्र (बार्क) के विश्लेषक महेंद्र सिंह का कहना है कि ड्रॉप आउट में 10-15 फीसदी बेटियां महज टॉयलेट सहित अन्य इंतजाम नहीं होने के चलते ही स्कूल छोड़ देती हैं। इसके अलावा उन्हें असामाजिक तत्वों की आपत्तिजनक हरकतें भी झेलती हैं। ऐसे टॉयलेट भी कम नहीं जिनका उपयोग करने से बेहतर है न करना। राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष पवन सुराणा कहती है: टॉयलेट के कारण यदि एक भी बेटी स्कूल नहीं जा पा रही है तो यह शिक्षा के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।भारतीय महिला फैडरेशन की राज्य महासचिव निशा सिद्धू का कहना है कि राज्य के हर स्कूल में बेटियों के लिए कम से कम दो से पांच टॉयलेट आवश्यक रूप से तैयार करने चाहिए। इनकी साफ-सफाई की बकायदा रोजाना मॉनीटरिंग होनी चाहिए। अफसरों की जवाहदेही सुनिश्चित होनी चाहिए। ह्मून रिसोर्स इंस्टीट्यूट के संयोजक विजय गोयल का मानना है कि स्कूल में जितना शिक्षक का होना जरूरी है, उससे कहीं ज्यादा बेटियों के लिए टॉयलेट जरूरी हैं। यदि ऐसा नहीं हुआ तो शिक्षा पर खर्च होने वाली हमारा बड़ा पैसा बर्बाद होता रहेगा।