विदिशा। अपनी तमाम जिंदगी में एक बार भी स्कूल का मुंह नहीं देखने वाले शहर के मुन्नालाल विश्वकर्मा एक शख्सियत बन गए हैं। उनके लिए लीक से हटकर चलने के सफर की शुरुआत जरा भी आसान नहीं थी, क्योंकि जो काम वे कर रहे थे लोग उसे गंभीरता से नहीं लेते थे। इतना ही नहीं उन्हें बार-बार टोका भी जाता था। बावजूद उन्होंने अपने कदम पीछे नहीं हटाए और नतीजा यह है कि अब वे शहर की शख्सियतों में शुमार हो गए हैं। साथ ही वे दूसरों के लिए एक उदाहरण भी बन गए हैं। मुन्नालाल का मानना है कि जो धुन उन पर सवार थी उसके लिए किसी पढ़ाई की नहीं बल्कि रोजाना जिंदगी के अनुभव और नए नजरिए की जरूरत थी और इसी गुण से उन्हें सफलता मिल सकती थी।
400 से आकृतियां संग्रहित-मुन्नालाल विश्वकर्मा ने अपने घर के एक कमरे में रेप्लिका आर्ट गेलरी बनाई है। जिसमें करीब 400 कृतियों का संग्रह हो चुका है। वे काष्ठ के करवट लेने पर नाम से प्रदर्शनी भी लगाते हैं। हालांकि वे अब भी अपनी कला को दिखाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनका कहना है बढ़ईगिरी से परिवार का गुजारा करते हैं लेकिन कला के लिए मदद की जरूरत है।http://www.bhaskar.com/article/MP-GWA-munnalal-viswakarma-made-another-record-3864232.html