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शिक्षा के मंदिर में डटा है सिपाही

घिराय : अकसर आपने सुना होगा कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक विद्यार्थियों को पढ़ाने से कतराते हैं। जब स्कूल का अतिरिक्त कार्यभार सौंप दे तो स्कूल से ही गायब हो जाते हैं। हालांकि कुछ ऐसे भी मास्टर हैं जो स्कूल का प्रबंधन का कार्य करने के साथ शिक्षा के दीप जला रहे हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं बलवंत सिंह सहरावत। लगभग 32 साल पहले सेना में एजूकेशन हवलदार की पोस्ट पर लगे अब यह शिक्षा के प्रसार को ही अपना धर्म मानते हैं। इनका मानना है कि व्यक्ति चाहे तो सभी काम को करते हुए भी वह विद्यार्थियों को शिक्षा बांट सकता है। यही कारण है कि 31 साल बाद आज यह घिराय गांव स्थित राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल में प्रधानाचार्य के पद पर होने के बाद भी लगातार विद्यार्थियों के पांच छह कक्षाएं ले लेते हैं। लगभग सात साल तक देश की सेवा करने के बाद बलवंत सहरावत ने सेना में नायब सूबेदार की पोस्ट से रिटायरमेंट लेकर शिक्षा के क्षेत्र में उतरने का मन बना लिया। कोशिश जारी रखी और वर्ष 2000 में सिवानी बोलन गांव के स्कूल में हेड मास्टर के पद पर नियुक्त हुए।
यहां भी उनका पढ़ाने का शौक जारी रहा। स्कूल के प्रबंध कार्य को देखते हुए वह बच्चों को पढ़ाते रहे। इनके कार्य को देखते हुए विभाग ने छह वर्ष बाद ही इन्हें घिराय स्थित राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य के पद पर प्रमोशन दी। यहां आने के बाद भी पढ़ाने का शौक नहीं छूटा। स्कूल में सेना की तरह अनुशासन बनाए रखा। शिक्षकों के साथ साझेदारी कर अंग्रेजी व सामाजिक विज्ञान के लगातार चार-पांच कक्षाएं लेने लगे। इस दौरान स्कूल के कार्य को भी किसी प्रकार से प्रभावित नहीं होने दिया। उनके इस कार्य को देख अन्य शिक्षक भी उनसे प्रेरणा लेकर शिक्षा के दीप जला रहे हैं। क्या कहते हैं स्कूल के शिक्षक प्राचार्य के बारे में स्कूल में कार्यरत शिक्षक भी हर वक्त बातें करते रहते हैं कि इस पद पर होने के बाद भी यह लगातार चार से पांच कक्षाएं लेकर दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। शिक्षकों का कहना है कि जब प्राचार्य बलवंत सिंह सहरावत कक्षा में होते हैं और जब बाहर से कोई व्यक्ति उनसे मिलने आता है तो वह कक्षा छोड़कर नहीं आते। प्राचार्य के बारें में होती है चर्चा प्राचार्य बलवंत सिंह सहरावत द्वारा शिक्षा की लौ को जलाने के अभियान की चर्चा गांव में होती है। ग्रामीण जयपाल बूरा, सतबीर बूरा, सुखबीर बूरा, रामधारी शर्मा, सरपंच राजबाला देवी कहती हैं कि प्राचार्य के पद पर होने के बाद भी छात्राओं को पढ़ाते हैं और अनुशासन के साथ स्कूल को चला रहे हैं। ग्रामीण उनकी प्रशंसा करते हुए नहीं थकते।http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=8&edition=2012-08-22&pageno=12