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लर्निग आउटकम जांचने-परखने के लिए तंत्र नहीं

नई दिल्ली : पांचवीं कक्षा में पहुंचकर भी स्कूली बच्चों को ठीक से जोड़-घटाव न आना, या फिर अंग्रेजी भाषा को पढ़ने-समझने में दिक्कतों की रिपोर्टो से सरकार को भी पसीना छूटने लगा है। वह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की चुनौतियों के बीच स्कूली बच्चों में सीखने-समझने की इस कमजोर प्रवृत्ति की जमीनी हकीकत खुद समझना चाहती है। मंशा, राज्यों के जरिए ही एक ऐसा तंत्र विकसित करने की है, जिसमें नमूने के तौर पर ही सही, लेकिन लर्निग आउटकम (सीखने-समझने के नतीजे) का अनिवार्य रूप से आकलन किया जाएगा। सरकार स्कूली बच्चों में सीखने-समझने की इस कमजोर स्थिति में सुधार को जरूरी के साथ ही बड़ी चुनौती मानकर चल रही है। लिहाजा वह इसके लिए राज्यों से जल्द ही विचार-विमर्श शुरू करना चाहती है। सूत्रों के मुताबिक, मानव संसाधन विकास मंत्रालय बच्चों में गणित, अंग्रेजी, भाषा ज्ञान या फिर अन्य विषयों को सीखने-समझने की परख के लिए एक-एक स्कूल में उसकी जांच का हिमायती नहीं है। अलबत्ता, उसकी मंशा नियमित आकलन के लिए नमूने के तौर पर परीक्षण की है। मंत्रालय चाहता है कि हर राज्य इसके लिए कदम उठाए। हालाकि, पढ़ने-सीखने के नतीजों के आकलन का वाकई क्या तौर-तरीका हो? यह राज्यों से मशविरे के बाद ही तय होगा। गौरतलब है कि स्कूली बच्चों में लर्निग आउटकम (सीखने-समझने के नतीजों) को सटीक और नियमित तौर पर जांचने-परखने के लिए कोई संस्थागत सरकारी तंत्र नहीं है। एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) हर साल देश में ग्रामीण क्षेत्रों की स्कूली शिक्षा की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट लाता है। जबकि, प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट (पीसा) और कुछ दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठन इस दिशा में काम करते हैं। अभी सरकार को भी उनकी रिपोर्ट पर ही निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए अब वह इसके लिए खुद राज्य सरकारों के अधीन अनिवार्य रूप उनका तंत्र विकसित करना चाहती है। सूत्र बताते हैं कि इस तरह के नियमित और अनिवार्य आकलन से मौजूदा स्कूली पाठ्यक्रम पर फिर से गौर करने में भी मदद मिलेगी। http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=8&edition=2012-08-12&pageno=2#id=111747609372642776_8_2012-08-12