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कोर्ट का फैसलाः स्कूल फीस में मनमर्जी नहीं

चंडीगढ़. सीबीएसई, आईसीएसई व पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड से संबद्ध पंजाब, हरियाणा व चंडीगढ़ के स्कूलों में फीस नहीं बढ़ेगी। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए दो टूक कहा कि कोई भी स्कूल संबद्धता देने वाले बोर्ड की सहमति के बिना स्कूल फीस में बढ़ोतरी नहीं करेगा। जस्टिस एसके मित्तल व जस्टिस टीपीएस मान की खंडपीठ ने साथ ही स्कूलों को पिछले पांच सालों में लाभ व हानि का ब्यौरा भी संबद्धता देने वाले बोर्ड के समक्ष देने के निर्देश दिए हैं। खंडपीठ ने जानकारी भी मांगी कि क्या स्कूलों में प्राइवेट पब्लिशर्स की छापी पुस्तकें पढ़ाई जा रही हैं। यदि ऐसा है तो एनसीईआरटी की पुस्तकें स्कूलों में पढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। अदालत ने सभी स्कूलों की सूची तलब करते हुए पूछा है कि आरटीई के तहत कितने स्कूल 25 फीसदी सीटें आरक्षित रखें हैं और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को निशुल्क वर्दी व किताबें दे रहे हैं। इसके अलावा स्कूलों में शिक्षकों को मिलने वाले वेतनमान की भी जानकारी दी जाए।
दो स्वयं सेवी संस्थाओं एंटी करप्शन एंड क्राइम इंवेस्टीगेशन सेल व आल इंडिया क्राइम प्रिवेंटिंग सोसायटी के साथ मलेरकोटला के 10 स्कूली छात्रों की तरफ से दाखिल अलग-अलग याचिकाओं में कहा गया कि स्कूल बिना सोचे समझे अपने मन मुताबिक फीस में बढ़ोतरी कर रहे हैं, जिस पर रोक लगाई जाए। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया कि प्रत्येक स्कूल अपना अकाउंट बरकरार रखेगा और नॉन बिजनेस संस्थान के सिद्धांतों पर काम करेगा। याचिका में मलेरकोटला के एक निजी स्कूल का हवाला देते हुए कहा गया कि स्कूल की फीस में लगातार बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है। अकेले वर्ष 2010 में स्कूल ने 1.08 करोड़ रुपये एनुअल चार्जेज व वर्ष 2011 में 1.87 करोड़ रुपये वसूले हैं। यही नहीं स्कूल स्टेशनरी व स्कूल ड्रेस भी एक खास दुकान से भी खरीदने पर विवश कर रहे हैं। 
हर साल बढ़ रही 10% फीस 
पंजाब के निजी स्कूलों में हर साल 10 से 12 फीसदी बढ़ाई जा रही है। अधिकांश स्कूल सीबीएसई व आईसीएसई से संबद्ध हैं। किसी भी स्कूल द्वारा फीस बढ़ाने से पहले इन बोर्ड से अनुमति नहीं ली जाती। पंजाब के कई प्राइवेट स्कूल 1500 से लेकर 3500 रुपए महीना तक फीस वसूल रहे हैं। इसके अतिरिक्तएडमिशन फीस के नाम पर स्कूलों द्वारा 20 हजार से लेकर एक लाख रुपये की राशि ली जा रही है। यही नहीं स्कूलों में जहां किताबें एनसीआरटीई की बजाए प्राइवेट पब्लिशर्स की हैं, वहीं स्टेशनरी व स्कूल ड्रेस भी तय दुकानों से ही लेने के लिए बाध्य किया जा रहा है।