नई दिल्ली : चीन, सिंगापुर, थाइलैंड सहित तमाम दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के हर तरह के सहयोग के बावजूद नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में 2014 से पहले पढ़ाई नहीं शुरू हो पाएगी। भूमि अधिग्रहण का काम पूरा हो गया है, लेकिन विश्वविद्यालय के परिसर का डिजाइन तैयार नहीं हो सका है। आने वाली 19 और 20 जुलाई को नालंदा विश्वविद्यालय प्रशासी निकाय की बैठक पटना में होगी। इसके बाद ही पठन-पाठन का शिड्यूल तय होने की संभावना है। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों से दस किलोमीटर की दूरी पर राज्य सरकार ने इसके लिए 446 एकड़ जमीन उपलब्ध करा दी है। विश्वविद्यालय की कुलपति गोपा सबरवाल ने कहा कि सब कुछ ठीक चलता रहा तब भी 2014 से पहले पढ़ाई शुरू होने का सवाल नहीं उठता। विश्र्वविद्यालय परिसर और भवन के डिजाइन के लिए ग्लोबल टेंडर किया गया है। इसमें पांच से छह महीने लग जाएंगे। इसके बाद भवन निर्माण में भी कम से कम डेढ़ से दो साल लगेंगे। गोपा सबरवाल ने कहा कि प्रारंभ में इतिहास और पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की पढ़ाई शुरू करने की योजना है।
मालूम हो कि नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन की अध्यक्षता में मेंटर ग्रुप की पिछली बैठक में तय हो चुका है कि विश्वविद्यालय में किन-किन विषयों की पढ़ाई होगी। बौद्ध धर्म, भाषा विज्ञान, दर्शन, अंतरराष्ट्रीय संबंध और शांति से जुड़े पाठ्यक्रम के अतिरिक्त बिजनेस मैनेजमेंट और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की पढ़ाई इसमें प्रमुख है।http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2012-05-05&pageno=3
मालूम हो कि नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन की अध्यक्षता में मेंटर ग्रुप की पिछली बैठक में तय हो चुका है कि विश्वविद्यालय में किन-किन विषयों की पढ़ाई होगी। बौद्ध धर्म, भाषा विज्ञान, दर्शन, अंतरराष्ट्रीय संबंध और शांति से जुड़े पाठ्यक्रम के अतिरिक्त बिजनेस मैनेजमेंट और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की पढ़ाई इसमें प्रमुख है।http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2012-05-05&pageno=3