
यूटीडी के लॉ डिपार्टमेंट में पढ़ने वाली उसेंडी को साल 2009-10 की सालाना परीक्षा के नतीजों की घोषणा के बाद से ही शक था कि कहीं न कहीं चूक हुई है।उसने पहले आरटीआई के तहत यूनिवर्सिटी से उत्तरपुस्तिका की मांग की। उत्तरपुस्तिका मिलने के बाद छात्रा ने देखा कि सभी नंबर ठीक हैं, लेकिन प्रैक्टिकल के नंबर ही नहीं जोड़े गए। अंक जोड़ने में गड़बड़ी कहां हुई, यह पता लगाने के लिए छात्रा ने फिर से आवेदन किया, लेकिन जनसूचना अधिकारी ने गोपनीयता का हवाला देते हुए उसे सूचना देने से मना कर दिया। बाद में यह मामला राज्य सूचना आयोग पहुंचा। राज्य सूचना आयोग के निर्देश के बाद मूल्यांकन से संबंधित जानकारी दी गई। गोपनीय विभाग के दस्तावेज निकले तो साफ हुआ कि गोपनीय विभाग ने अंकों के टेबुलेशन में चूक की है। दो प्रायोगिक परीक्षाओं के अंकों को जोड़ा ही नहीं किया था।
अंकों को जोड़ने के बाद पूरा नतीजा ही बदल गया। छात्रा ने दूसरी यूनिवर्सिटी में हुए इस तरह के केस की पेपर कटिंग के लगाकर बिंदुवार जवाब मांगा था। उसेंडी के अलावा तीन अन्य परीक्षार्थियों ने भी आरटीआई के तहत मिले दस्तावेजों के तहत मूल्यांकन और नतीजों को जारी करने में हुई लापरवाही पकड़ी। इस तरह के आवेदनों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। इस तरह के मामलों से चिंतित यूनिवर्सिटी का अधिष्ठाता छात्र कल्याण दफ्तर इस तरह के मामलों का पूरा रिकार्ड तैयार करवा रहा है.यूनिवर्सिटी को नतीजा संशोधित करना पड़ा।।http://www.bhaskar.com/article/CHH-RAI-now-wait-10-days-for-marriage-2530515.html